मेरे प्रिय विद्यार्थियों आज हम बात करेंगे कि कारक किसे कहते हैं और कारक के भेद कितने होते है (Karak Kise Kahate Hain और Karak Ke Kitne Bhed hote hain).
वैसे तो आप सभी ने 4th -5th की कक्षाओं से की कारक के बारे में पढ़ा होगा इसके अलावा प्रतियोगी परीक्षाओं में भी कारक से संबधित प्रश्न आते हैं तो आपको कारक के विषय में अच्छे से जानकारी होना बहुत आवश्यक है
तो आज हम बात करेंगे कि कारक किसे कहते हैं और कारक के भेद कितने होते है ?

Table of Contents
कारक किसे कहते हैं (Karak Kise Kahate Hain)
कारक की परिभाषा : संज्ञा या सर्वनाम का वाक्य के अन्य पदों (विशेषतः क्रिया) से जो संबंध होता है, उसे कारक कहते हैं।
जैसे – राम ने रावण को वाण से मारा।
इस वाक्य में राम क्रिया (मारा) का कर्ता है; रावण इस मारण क्रिया का कर्म है; वाण से यह क्रिया सम्पन्न की गई है, अतः वाण क्रिया का साधन होने से करण है।
कारक एवं कारक चिह्न
कारक |
चिह्न |
अर्थ |
कर्ता |
ने |
काम करने वाला |
कर्म |
को, ए |
क्रिया से प्रभावित होने वाला |
करण |
से, के द्वारा |
क्रिया का साधन |
सम्प्रदान |
को,के लिए, ए |
जिसके लिए क्रिया की सम्पन्न की जाए |
अपादान |
से (अलग होने का भाव) |
अलगाव, तुलना, आरम्भ, सिखने आदि का बोधक |
सम्बन्ध |
का, की, के, ना, नी, ने, रा, री, रे |
अन्य पदों से पारस्परिक सम्बन्ध |
अधिकरण |
में, पर |
क्रिया का आधार (स्थान, समय, अवसर) आदि का बोधक |
संबोधन |
ऐ !, हे !, अरे !, अजी !, ओ ! |
किसी को पुकारने या बुलाने का बोधक |
कारक के कितने भेद होते हैं (Karak Ke Kitne Bhed hote hain)
कारक के मुख्यतः आठ भेद होते हैं :
1. कर्ता कारक
2. कर्म कारक
3. करण कारक
4. सम्प्रदान कारक
5. अपादान कारक
6. संबंध कारक
7. अधिकरण कारक
8. संबोधन कारक
कर्ता कारक
जो संज्ञा शब्द अपना कार्य करने के लिए किसी के अधीन नहीं होता, उसे ‘कर्ता कारक’ कहते हैं। इसकी विभक्ति ने है।
जैसे – 1. गाँधीजी ने सत्य और अहिंसा की शिक्षा दी।
2. तुलसी ने ‘रामचरित मानस’ की रचना की।
3. राम ने रावण को मारा।
कर्म कारक
जिस वस्तु पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है, उसे सूचित करने वाले संज्ञा के रूप को ‘कर्म कारक’ कहते हैं। इसकी विभक्ति को है ।
जैसे- 1. शिकारी शेर को देखता है।
2. शिक्षक ने छात्रों को पढ़ाया।
3. राम ने रावण को मारा।
करण कारक
कर्ता जिसकी सहायता से कुछ कार्य करता है, उसे ‘करण कारक’ कहते हैं। इसकी विभक्ति से है ‘करण’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘सहायक’ या ‘साधन’।
जैसे- 1. तपेश गिलास से पानी पीता है।
2. वह लेखनी से पत्र लिखता है।
सम्प्रदान कारक
जिसके लिए काम किया जाता है, उसे ‘सम्प्रदान कारक’ कहते हैं। सम्प्रदान कारक की विभक्ति को, के लिए है। ‘सम्प्रदान’ का शाब्दिक अर्थ है- ‘देना’।
जैसे- 1. विराम नहाने को गया।
2. अभिराम श्याम के लिए आम लाया।
अपादान कारक
संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप, जिसमें किसी वस्तु का अलग होना पाया जाए, उसे ‘अपादान कारक’ कहते हैं। इसकी विभक्ति से है। ‘अपादान’ का शाब्दिक अर्थ है—’अलगाव की प्राप्ति।
जैसे – 1. वृक्ष से फल गिरा।
2. पेड़ से पत्ता पृथ्वी पर गिरा।
सम्बन्ध कारक
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी एक वस्तु का सम्बन्ध किसी दूसरी वस्तु के साथ ज्ञात हो, उसे ‘सम्बन्ध कारक’ कहते हैं। इसकी विभक्ति का, की, के, रा, री, रे है।
जैसे- 1. अमर का घर अच्छा है।
2. यान की गति तीव्र है।
अधिकरण कारक
क्रिया या आधार को सूचित करने वाली संज्ञा या सर्वनाम के स्वरूप को ‘अधिकरण कारक’ कहते हैं। इसकी विभक्ति में, में, पर है। ‘अधिकरण’ का शाब्दिक अर्थ है ‘आधार’ ।
जैसे- 1. सिंह वन में रहता है।
2. सौम्य घर में है।
3. पुस्तक मेज पर है।
सम्बोधन कारक
संज्ञा के जिस रूप से किसी के बुलाने या पुकारने का या संकेत करने का भाव प्रकट हो, उसे ‘सम्बोधन कारक’ कहते हैं। इसकी विभक्ति हे, हो, अरे, अजी, अहो है।
जैसे – 1. हे भगवान् ! अब क्या होगा?
2. अरे! तुम अभी घर नहीं गए।
3. अजी! रूठकर अब कहाँ जाइएगा?
4. अहो! आपके दर्शन तो हुए।
कर्म और सम्प्रदान में अन्तर
कर्म और सम्प्रदान दोनों कारकों में ‘को’ चिह्न का प्रयोग होता है पर दोनों का अन्तर स्पष्ट है। कर्म कारक की विभक्ति (कारक-चिह्न) कर्म में लगती है और कर्म पर क्रिया के व्यापार का प्रभाव पड़ता है,
किन्तु सम्प्रदान कारक की विभक्ति (कारक-चिह्न) जिस संज्ञा में लगती है, उसके ऊपर क्रिया के व्यापार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, बल्कि क्रिया उसी के लिए सम्पादित की जाती है।
दूसरे शब्दों में, सम्प्रदान कारक का ‘को’ ‘के लिए’ के स्थान पर या उसके अर्थ में प्रयुक्त होता है, जबकि कर्म कारक के ‘को’ का ‘के लिए’ अर्थ से कोई मतलब नहीं होता है।
जैसे—राम ने श्याम को मारा। (कर्म कारक)
राम ने श्याम को किताब दी। (सम्प्रदान कारक)पहले वाक्य में ‘मारना’ क्रिया के व्यापार का प्रभाव श्याम के ऊपर पड़ता है, इसलिए ‘श्याम’ ‘कर्म’ है और ‘को’ विभक्ति श्याम (कर्म) में लगी है इसलिए ‘श्याम’ कर्म कारक में है।
किन्तु दूसरे वाक्य में ‘देना’ क्रिया के व्यापार का कोई प्रश्न नहीं उठता। वाक्य को सुनने या पढ़ने के साथ ही प्रश्न यह उठता है कि ‘देना’ क्रिया किसके लिए की गई ? उत्तर मिलता है ‘श्याम के लिए’ । इस प्रकार ‘श्याम’ सम्प्रदान कारक में है।
करण और अपादान में अन्तर
करण और अपादान दोनों कारकों में ‘से’ चिह्न का प्रयोग होता है किन्तु इन दोनों में मूलभूत अंतर है। करण क्रिया का साधन या उपकरण है। कर्ता कार्य सम्पन्न करने के लिए जिस उपकरण या साधन का प्रयोग करता है, उसे करण कहते हैं। जैसे- मैं क़लम से लिखता हूँ।
यहाँ कलम लिखने का उपकरण है अतः कलम शब्द का प्रयोग करण कारक में हुआ है।
अपादान में अपाय (अलगाव) का भाव निहित है। जैसे— पेड़ से पत्ता गिरा
अपादान कारक पेड़ में है, पत्ते में नहीं। जो अलग हुआ है उसमें अपादान कारक नहीं माना जाता, अपितु जहाँ से अलग हुआ है उसमें अपादान कारक होता है।
पेड़ तो अपनी जगह स्थिर है, पत्ता अलग हो गया, अतः ध्रुव (स्थिर) वस्तु में अपादान होगा। एक अन्य उदाहरण वह गाँव से चला आया। यहाँ गाँव में अपादान कारक है।